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कुह॒ त्या कुह॒ नु श्रु॒ता दि॒वि दे॒वा नास॑त्या। कस्मि॒न्ना य॑तथो॒ जने॒ को वां॑ न॒दीनां॒ सचा॑ ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kuha tyā kuha nu śrutā divi devā nāsatyā | kasminn ā yatatho jane ko vāṁ nadīnāṁ sacā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कुह॑। त्या। कुह॑। नु। श्रु॒ता। दि॒वि। दे॒वा। नास॑त्या। कस्मि॑न्। आ। य॒त॒थः॒। जने॑। कः। वा॒म्। न॒दीना॑म्। सचा॑ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:74» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:13» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को विद्वानों के प्रति कैसे पूछना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अध्यापक और उपदेशक जनो ! (त्या) ये (नासत्या) सत्यस्वरूप (कुह) कहाँ वर्त्तमान हैं और (कुह) कहाँ (श्रुता) सुने हुए (देवा) श्रेष्ठ गुणवाले होते हैं और तुम (कस्मिन्) किस (जने) जन में (आ, यतथः) सब ओर से यत्न करते हो (वाम्) उन आप दोनों की (नदीनाम्) नदियों के (सचा) सम्बन्ध से (कः) कौन (नु) शीघ्र है जो (दिवि) श्रेष्ठ व्यवहार वा प्रकाश में प्रयत्न करते हो ॥२॥
भावार्थभाषाः - जिज्ञासु जनों को चाहिये कि विद्वानों के समीप जाकर बिजुली आदि की विद्याओं को पूछें ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैर्विदुषः प्रति कथं प्रष्टव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे अध्यापकोपदेशकौ ! त्या नासत्या कुह वर्त्तेते कुह श्रुता देवा भवतो युवां कस्मिञ्जन आ यतथो वां तयोर्युवयोर्नदीनां सचा को न्वस्ति यौ दिव्या यतथः ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कुह) क्व (त्या) तौ (कुह) (नु) सद्यः (श्रुता) श्रुतौ (दिवि) दिव्ये व्यवहारे प्रकाशे वा (देवा) दिव्यगुणौ (नासत्या) सत्यस्वरूपौ (कस्मिन्) (आ) (यतथः) यतेथे। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदम्। (जने) (कः) (वाम्) युवाम् (नदीनाम्) (सचा) समवाये ॥२॥
भावार्थभाषाः - जिज्ञासुभिर्विदुषां सनीडं गत्वा विद्युदादिविद्याः प्रष्टव्याः ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जिज्ञासू लोकांनी विद्वानांकडून विद्युत इत्यादीच्या विद्येबाबत माहिती घ्यावी. ॥ २ ॥